Harivanshi Sampraday
श्री सेवक वाणी PDF File || हिन्दी अर्थ सहित
श्री सेवक वाणी PDF File || हिन्दी अर्थ सहित
भक्त का अथवा साधु का वस्तुतः कोई जीवन वृत्त नहीं होता उसके जीवन का समग्र उसकी प्रवृत्ति, वृत्ति तथा कृति में समाहित हो जाया करता है। उसी मंगलमयी वाणी अथवा सद्विचार मंजूषा रूपी प्रकाश पुञ्ज से उस महद् विभूति का सान्निध्य प्राप्त किया जा सकता है। मुझे श्रीहित कृपा मूर्ति रसिक पद रेणु परम श्रद्धेय श्रीहितदास जी महाराज का सामीप्य, सान्निध्य तो अधिक प्राप्त नहीं हुआ, परन्तु उनकी रचनाओं ने, उनके चिंतन ने अथवा जो उस दिव्य विभूति के बारे में श्रवण करने को मिला उन सुयश सिंचित विचार लहरियों ने संयुक्त होकर निश्चित ही अंतः करण में एक विमल व्यक्तित्व को आकार प्रदान किया, जिससे मुझे चेतना के एक स्तर पर श्री वृन्दावन निष्ठा को प्रतिष्ठा प्रदान करने वाले एक सुदृढ़, सरस, सुंदर रसानुरागी रसिक संत का चिरस्थाई संग प्राप्त हुआ। अनन्यता एवं दृढ़ता, यह रसोपासना का प्राण हैं, मेरूदण्ड है। परन्तु आज इसी अनन्यता एवं दृढ़ता ने संकीर्णता एवं रूक्षता का रूप लेकर सम्यक् प्रकार से वस्तु प्रदान करने की सुंदर परिपाटी "सम्प्रदायवाद" को दूषित प्रायः ही कर दिया है। परन्तु श्री महाराज जी सदा ही इसके अपवाद रहे। वह एक ऐसा व्यक्तित्व था जिसकी अनन्यता, सहज उदारता से विभूषित थी। जिसकी दृढ़ता को उसकी सुंदर सरलता ने सदा अलंकृत ही किया। जहाँ विरक्ति में कहीं किञ्चित मात्र भी उदासीनता नहीं अपितु स्वेष्ट की अनुरक्ति से पूरित नित्य नवायमान् उत्फुल्लता थी। जिसकी रसिकता में श्रीमहिताचार्य द्वारा प्रकटित श्री वृंदावनेश्वरी के दास्योत्सव की दुर्लभ अनुभूति की दिव्यता थी एवं वाणी में वंशी के उस मधुराति [सात] मधुर रस विलास के गान का आस्वादन था। महाराज श्री ने एक अनन्य Play सक की धर्म परम्परा को स्वीकार कर नित्य विहार रस शिका अवगाहन किया एवं उच्छरित हित रस से रसिक समाज को रसायित किया। महाराज श्री ने जो श्री कहा, लिखा अथवा साहित्य सृजन किया, वह सब कोमलता, प्राञ्जलता, आत्मीयता, सहजता, सरसता आदि सद्गुणों से समलंकृत तो है ही पर उसमें उनकी आंतरिक अनुभूतियों की सुषमा एवं निबिड़ता भी है। गुण गंभीर श्रीहित वाणी के सतत् चिंतन एवं मंथन की उज्जवलता एवं सुरभि महाराज श्री के द्वारा की गई श्री हित चतुरासी की किञ्चित् पूर्व प्रकाशित टीका "रसिक मन रंजिनी" में सहज ही प्रकट हुई है। उसी क्रम में अब यह अगला हित सौरभ सुवासित वाणी पुष्प श्री सेवक वाणी की "हित पथ प्रदर्शिणी" टीका रसिकों को आनन्दित करने के लिए प्रफुल्लित है। यह सुविदित है, श्री सेवक वाणी श्री राधावल्लभ सम्प्रदाय का प्रधान प्रमाण ग्रन्थ है। भाव की दृष्टि से तो यह वाणी साक्षात् श्रीहरिवंश द्वारा प्रदत्त प्रीति प्रसाद है ही जिसके आधार पर अद्यावधि रसिक महानुभाव आगम निगम अगोचर हित रस रीति के सैद्धान्तिक मर्म को हृदयंगम कर "श्रीहरिवशं गुसाँई भजन की रीति" को जो अपने आप में अनुपम है, अनूठी है, अतुल्य है, परन्तु अति दुर्लभ एवं दुरूह है, सिद्ध करते आ रहे है। यदि कहा जाए कि श्री हरिवंश के परमाद्भुत रस विभु को सम्यक् प्रकारेण समझने के लिए श्री सेवक वाणी ही एक आधार है तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। स्वनाम धन्य अनन्य रसिक श्री नागरीदास जी के भाव पूरित कथन से इस वाणी के आश्रय का महत्व और भी स्पष्ट हो जाता हैमधुर रस विलास के गान का आस्वादन था। महाराज श्री ने एक अनन्य Play सक की धर्म परम्परा को स्वीकार कर नित्य विहार रस शिका अवगाहन किया एवं उच्छरित हित रस से रसिक समाज को रसायित किया। महाराज श्री ने जो श्री कहा, लिखा अथवा साहित्य सृजन किया, वह सब कोमलता, प्राञ्जलता, आत्मीयता, सहजता, सरसता आदि सद्गुणों से समलंकृत तो है ही पर उसमें उनकी आंतरिक अनुभूतियों की सुषमा एवं निबिड़ता भी है। गुण गंभीर श्रीहित वाणी के सतत् चिंतन एवं मंथन की उज्जवलता एवं सुरभि महाराज श्री के द्वारा की गई श्री हित चतुरासी की किञ्चित् पूर्व प्रकाशित टीका "रसिक मन रंजिनी" में सहज ही प्रकट हुई है। उसी क्रम में अब यह अगला हित सौरभ सुवासित वाणी पुष्प श्री सेवक वाणी की "हित पथ प्रदर्शिणी" टीका रसिकों को आनन्दित करने के लिए प्रफुल्लित है। यह सुविदित है, श्री सेवक वाणी श्री राधावल्लभ सम्प्रदाय का प्रधान प्रमाण ग्रन्थ है। भाव की दृष्टि से तो यह वाणी साक्षात् श्रीहरिवंश द्वारा प्रदत्त प्रीति प्रसाद है ही जिसके आधार पर अद्यावधि रसिक महानुभाव आगम निगम अगोचर हित रस रीति के सैद्धान्तिक मर्म को हृदयंगम कर "श्रीहरिवशं गुसाँई भजन की रीति" को जो अपने आप में अनुपम है, अनूठी है, अतुल्य है, परन्तु अति दुर्लभ एवं दुरूह है, सिद्ध करते आ रहे है। यदि कहा जाए कि श्री हरिवंश के परमाद्भुत रस विभु को सम्यक् प्रकारेण समझने के लिए श्री सेवक वाणी ही एक आधार है तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। स्वनाम धन्य अनन्य रसिक श्री नागरीदास जी के भाव पूरित कथन से इस वाणी के आश्रय का महत्व और भी स्पष्ट हो जाता है मधुर रस विलास के गान का आस्वादन था। महाराज श्री ने एक अनन्य Play सक की धर्म परम्परा को स्वीकार कर नित्य विहार रस शिका अवगाहन किया एवं उच्छरित हित रस से रसिक समाज को रसायित किया। महाराज श्री ने जो श्री कहा, लिखा अथवा साहित्य सृजन किया, वह सब कोमलता, प्राञ्जलता, आत्मीयता, सहजता, सरसता आदि सद्गुणों से समलंकृत तो है ही पर उसमें उनकी आंतरिक अनुभूतियों की सुषमा एवं निबिड़ता भी है। गुण गंभीर श्रीहित वाणी के सतत् चिंतन एवं मंथन की उज्जवलता एवं सुरभि महाराज श्री के द्वारा की गई श्री हित चतुरासी की किञ्चित् पूर्व प्रकाशित टीका "रसिक मन रंजिनी" में सहज ही प्रकट हुई है। उसी क्रम में अब यह अगला हित सौरभ सुवासित वाणी पुष्प श्री सेवक वाणी की "हित पथ प्रदर्शिणी" टीका रसिकों को आनन्दित करने के लिए प्रफुल्लित है। यह सुविदित है, श्री सेवक वाणी श्री राधावल्लभ सम्प्रदाय का प्रधान प्रमाण ग्रन्थ है। भाव की दृष्टि से तो यह वाणी साक्षात् श्रीहरिवंश द्वारा प्रदत्त प्रीति प्रसाद है ही जिसके आधार पर अद्यावधि रसिक महानुभाव आगम निगम 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