Harivanshi Sampraday
बयालीस लीला PDF File | हिंदी अर्थ सहित | श्री हित ध्रुवदास जी द्वारा रचित
बयालीस लीला PDF File | हिंदी अर्थ सहित | श्री हित ध्रुवदास जी द्वारा रचित
प्रस्तावना
प्रेम की बात कुछ इक लाड़िली लाल जू जैसी उर में उपजाई, तैसी कही। रसिक भक्तनि सौं यह विनती है, जो कहुँ घटि बढ़ि भूलि कही गई होइ, तौ कृपा करि समुझाइ दैनी।
जिहि प्रेम माधुरी श्री जुगलचंद, आनंदकंद, नित्यानंद, उन्नत नित्य केसोर श्री वृंदावन-निकुंज-बिहार रसमत्त विलास करत हैं। जथामति किंचित्डीग्यौ कै कही, जैसे सिंधु त सीप भरि लीजै।
प्रेम-नेम के लच्छन कहा। प्रेम कहा, नेम कहा।
प्रेम को निज रूप चाह, चटपटी, अधीनता, उज्जलता, एकरस,
कोमलता, स्निग्धता, सरसता, नौतनता, सदा एकरस, रुचि-तरंग बढ़त रहै,
सहज स्वच्छंद, मधुरिता, मादिकता, जाकौ आदि अंत नाही, छिन-छिननौतन स्वाद।
श्री हित धुवदास जी रसोपासना के सिद्धान्त-सूत्रों का निरूपण करने से पूर्व अपना दैन्य-भाव प्रकाश करते हुए वस्तु निर्देशात्मक मङ्गलाचरण करते है कि श्री हित लाड़िली-लाल जू ने मेरे हृदय में प्रेम का स्वरूप जैसा कुछ कट किया है, मैं उसे यथावत् कहने का प्रयास कर रहा हूँ।
वे कहते हैं कि रसिक भक्तों से मेरी यह प्रार्थना है कि यदि मुझ से अपने कथन में प्रेम-रस सम्बन्धी कोई बात न्यूनाधिक अथवा त्रुटिपूर्ण कहबदी गयी हो, तो मुझे समझाने की वे कृपा करें।
आनन्दकन्द नित्यानन्द नवनवायमान् उन्नत मिथुन किशोर श्री
श्यामाश्याम युगल चन्द्र वृन्दावन के निकुञ्ज-विहार की जिस प्रेम-माधुरी में रसमत्त बने रहते हैं, उसका मैंने अपनी अल्प बुद्धि के अनुसार वर्णन करने की धृष्टता की है। मेरा यह कथन ऐसा ही है जैसे कि अपार अथाह समुद्र में से एक लघु-पात्र सुक्ति मात्र भर लिया गया हो।
यह वृन्दावन का युगल विहार निर्हेतुक शुद्ध प्रेम-विलास है, किन्तु यह विलास प्रेम-नेम ओतप्रोत है, अतएव सहज प्रश्न बनता है कि प्रेम एवं नेम के क्या लक्षण है, अर्थात् किसे प्रेम कहते हैं. किसे नेम?
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